9.20.2008

"पद से शक्ति"

हाल ही में एक मंत्रीजी (इन महाशय का नाम नही लेना चाहुंगा) ने खुलेआम अपने पद और ताकत का प्रदर्शन किया वह बहुत ही निंदनिय और शर्म की बात है.
इन्हे समझना चाहीए कि पद और पदवी शक्ति देते है, पद छिन जाता है तो शक्ति भी चली जाती हैं. पद अधिकार देते है और अधिकार शक्ति. मै तो एक ही बात जानता हुँ कि झुठे नेताओं की रीढ की हड्डी खासतौर से नही होती है वे सिर्फ़ अधिकार्रो के बैसाखियों पर ही चल सकते है. महानता सिर्फ़ ताकतवर होने से नही बल्कि उस ताकत के सही इस्तेमाल करने में है. नेताओं में आचार नितियों का अभाव एक देश ओर उसके लोगो के विनाश का मुख्य कारण है. क्या एक नागरिक को इस बात का हट नही करना चाहिए की उनके नेंताओं में कम से कम कुछ मुलभुत योग्यताये तो हो ही पर नेंताओं को चुनते हुवे हम किसी भी मूलभूत योग्यताओं पर ध्यान नही देते. बहुत सी सरकारें ऐसे लोगो द्वारा चलाई जा रही है जो शासन करने के लायक नही है और बिश्वास करने लायक भी नही.
आखिर में मै यही कहना चाहुँगा की हम किस बात के लिए परेशान होते है, इसलिय नही की हम ग़लत को ललकारना चाहते है बल्कि इसलिए की हम सच्चाई को बचा सके ,इन नेताओं को समझना चाहीए कि "सिर्फ़ अच्छे ब्यवहार से ही इज्ज़त मिलती है पद से नही" !!

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4 comments:

Anonymous said...

satya bachan maharaj

संतोष अग्रवाल said...

प्रभु.."चचुआ" कुछ चूहा चूहा या कछुआ सा नहीं लगता? अगर नाम बिगाड़ना ही है तो कम से कम ऐसे तो बिगाडो की प्रेम भी छलके ...जैसे की " चाचू का ब्लॉग" ... बाकि जैसी प्रभु की इच्छा.. :)

Dr. Nazar Mahmood said...

RANJEET JI
GOOD EOUNGH

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाकई सोचनीय स्थिति निंदनीय भी

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