तीन इंजीनियर और तीन वकील कांफ़ैस के लिए टे्न से जा रहे थे ।तीनो वकीलो ने अपना-अपना टिकट खरीदा ।लेकिन तीनो इंजीनियरों ने मिलकर केवल एक ही टिकट खरीदा । एक वकील ने पूछा,"आप एक ही टिकट से कैसे काम चलाएँगे ?
"इंजीनियरों ने जवाब दिया " देखते जाओ ।" वे गाडी मे चढ गये ।वकील अपनी रिजर्व सीटों पर बैठ गए । लेकिन तीनो इंजीनियरों ने खुद को शौचालय मे बंद कर लिया ।गाडी चल पडी l कंडक्टर टिकट जांच करने आया और उसने शौचालय का दरवाजा खटखटाया । एक हाथ बाहर आया जिसने टिकट पकडा हुआ था ।कंडक्टर संतुष्ठ होकर चला गया । वकील हक्के-बक्के पड गए । उन्होंने कहा,"हमने ऐसा क्यों नहीं सोचा?"
वापसी पर उन्होंने तय किया कि वे भी वही करेंगे जो इंजीनियरों ने किया ।अपनी वापसी यात्रा पर उन्होंने एक ही टिकट खरीदा । उन्होंने देखा कि वे तीन इंजीनियर भी उसी गाडी से वापस लौट रहे थे।लेकिन इस बार उन्होंने एक भी टिकट नहीं खरीदा । वकील हैरान थे । उन्होंने पूछा,"तुम बिना टिकट कैसे काम चलाओगे?" इंजीनियरों ने जवाब दिया " देखते जाओ ।" वे सभी गाडी मे सवार हो गए ।गाडी चल पडी ।तीनो इंजीनियरों और तीनो वकीलो ने खुद को दो अलग-अलग शौचालय मे बंद कर लिया ।कुछ देर बाद उनमें से एक इंजीनियर बाहर आया और वकीलों के शौचालय का दरवाजा खटखटाते हुए टिकट माँगी । एक हाथ बाहर आया जिसमे टिकट था । इंजीनियर ने टिकट पकडा और अपने शौचालय मे चला गया ।
कहानी का सार यह है कि हर भक्छक न सिर्फ रास्ता खोज रहा है कि किस तरह सिस्टम को बाईपास किया जाए बल्कि इसमे मुकाबला भी हो रहा है कि सबसे बडा चोर कौन है ।
2 comments:
तुम्हारी लिखने की चाहत तुमहारे अंदर उफनती भावनाओं का अहसास देती है मगर दुसरों की क़ही बातों का हुबहू उद्धरण मौलिकता की क़मी बनकर खटकती भी है |ब्लाग को स्वयं को समझने का अच्छा माध्यम बनाया जा सकता है बशर्ते की आप व्यक्तता मे ईमानदारी बरतें |ऐसा लिखें जिसमें आपको देखा जा सके |
.....आपका प्रयास सरहानिय है...विषयो का चयन आपके व्यक्तित्व की हल्की झलक देता है |
......लगे रहो....|
मैं भाई साहब की बात का पुरजोर समर्थन करता हूँ. मौलिकता होनी बहुत जरुरी है, परिपक्वता अभ्यास के साथ आ ही जाती है. मुझे बहुत खुशी है कि तुमने एक अच्छे काम कि प्रेरणा ली,और इसे बड़ी हिम्मत के साथ निभा रहे हो. लिखने के साथ-साथ दूसरो के ब्लॉग भी खूब पढो, यहाँ ज्ञान का भंडार छुपा है.
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