9.16.2008

प्रदुषण दुबकी लगाने को तैयार है - फ़िर से

" हलांकि delhi , दसहरा और दुर्गा पूजा आने की मीठी यादो मे खोया हुआ है , पर नदी किसी राहत के बिना अपना अस्तित्वा बचाए रखने के लिए तराश रही है . २२ किलोमीटर लम्बी यमुना जो राजधानी के बिच से बहती है , अपने अन्दर दुर्गा की न जाने कितनी मूर्तियों को समाये हुए है . अगर प्रदुषण की दि्ष्ठी से देखा जाय तो टनों पैंट , टनों तेल पोलिश और उतनी ही फूल , पत्तियाँ , नारियल , भूसा और बाँस होता है और दूसरी तरफ़ अब तक करोडों यमुना एक्शन प्लान पर खर्च किए जा चुके है सेंट्रल पोल्लुशन कंट्रोल बोर्ड का कहना है की "इन प्रदूषित चीजो को नदी मे प्रवाह करने से , कैंसर फैलाने वाले तत्वा , जिंक , लीड , कदिमियम , आर्सनिक , क्रोमिम , और निक्केल की मात्र काफी बाद जाती है , और आक्शीजन की मात्र कम हो जाती है ." इनके अलावा इन मूर्तियों को सजाने मे जो पैंट उपयोग होता है , उसे प्राकर्तिक रंगों से बनाया जाना चाहिये जो बयादिग्रदाब्ले होते है . दुर्भाग्य से , खतरे की घंटीया बजाने के बाद भी यह महान भारतीय परम्परा बडती ही चली जा रही है ."
और आखिर मे मै यह कहना चाहुगा की यह सब भगवान के नाम पर होता है . जो चीजें हम धर्म के नाम पर करते है वह किसी को भी इस अचरज मे डाल देने के लिए काफी है की आखिर त्योहार किस बारे मे है .

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4 comments:

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

Anonymous said...

ब्लाग की दुनिया में आपका स्वागत है. उम्मीद है और लोग आपके साथ जुड़ेंगे. और कम से कम दूसरी पोस्ट आप जरूर लिखेंगे.

شہروز said...

इक बेचैनी है, इक छटपटाहट है aapke अन्दर.
और इसे अभिव्यक्त करने का आपका प्रयास अच्छा है.
लिखना ही हमें आशा बंधाता है, इक नए सवेरे का.

कभी फ़ुर्सत मिले तो मेरे भी दिनरात देख लें.link है:

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com
http://saajha-sarokaar.blogspot.com
http://hamzabaan.blogspot.com

kar lo duniya muththee me said...

बहुत सटीक लिखा है हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें

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